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NEET PG: सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख – मेडिकल सीटें खाली नहीं रह सकतीं, केंद्र को दी अहम सलाह

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सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कोर्सेज में खाली सीटों को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार और राज्यों को ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया है। शुक्रवार को हुई सुनवाई में न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और के. वी. विश्वनाथन ने कहा कि मेडिकल सीटें खाली रहना देश के लिए नुकसानदायक है।

क्या है मामला?

अप्रैल 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस लिया था कि मेडिकल सुपर स्पेशलिटी कोर्स में 1,003 सीटें खाली रह गई थीं। यह स्थिति तब है जब देश में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है। सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए एक समिति बनाने का प्रस्ताव रखा था।

समिति की सिफारिशें और सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक की अध्यक्षता में एक समिति बनाई, जिसमें राज्यों और निजी मेडिकल कॉलेजों के प्रतिनिधि शामिल थे। समिति ने अपनी सिफारिशें दे दी हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब केंद्र को इन सिफारिशों पर अमल करते हुए सभी हितधारकों के साथ बैठक करनी चाहिए।

तीन महीने में ठोस समाधान का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह तीन महीने के भीतर इस समस्या का समाधान लेकर आए। इसके साथ ही अप्रैल 2024 में इस मामले की अगली सुनवाई तय की गई है।

विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी बनाम खाली सीटें

सुपर स्पेशलिटी कोर्स का मकसद चिकित्सा के खास क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्रदान करना है। हालांकि, खाली सीटों की वजह से न केवल मरीजों को नुकसान हो रहा है, बल्कि देश को भी योग्य डॉक्टर नहीं मिल पा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक गंभीर समस्या बताते हुए कहा कि ऐसी सीटें खाली रहना स्वीकार्य नहीं है।

क्या हो सकता है समाधान?

  • प्रवेश प्रक्रिया में सुधार: मेडिकल सीटों के लिए एडमिशन प्रक्रिया को और पारदर्शी और सरल बनाया जाए।
  • शैक्षणिक संस्थानों की भागीदारी: निजी और सरकारी मेडिकल कॉलेजों को मिलकर इस समस्या का समाधान करना चाहिए।
  • सुपर स्पेशलिटी कोर्स की जागरूकता: छात्रों को इन कोर्सेज के महत्व और अवसरों के बारे में बेहतर जानकारी दी जाए।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार को तीन महीने के भीतर ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया है। विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी और खाली सीटों के बीच का यह विरोधाभास जल्द सुलझाया जाना चाहिए, ताकि देश को स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में मजबूत किया जा सके।

आपका क्या मानना है? क्या सरकार और संस्थान मिलकर इस समस्या को सुलझा पाएंगे? अपनी राय जरूर बताएं!

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