डूंगरपुर-बांसवाड़ा के सांसद राजकुमार रोत ने अब दिल्ली में रह रहे आदिवासी समुदाय की उपेक्षा को लेकर बड़ी बात उठाई है। उन्होंने कहा है कि दिल्ली में करीब 18 से 20 लाख आदिवासी लोग रहते हैं, लेकिन दिल्ली सरकार के जनगणना कॉलम में इनकी संख्या को शून्य बताया गया है।
हाल ही में दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में राजकुमार रोत ने आदिवासी समाज के हितों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि भील, गोड, और अन्य आदिवासी समुदायों के लोग दिल्ली में रहते हुए भी अपने हक से वंचित हैं। राजकुमार रोत ने कांग्रेस और दिल्ली सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि जब बात आदिवासियों के अधिकारों की होती है, तो दिल्ली सरकार हमेशा इस मामले को नजरअंदाज करती है।
राजकुमार रोत ने यह भी साफ किया कि अब यह लड़ाई सिर्फ सड़क से संसद तक जाएगी। वह आदिवासियों के अधिकारों के लिए एक मजबूत आवाज उठाएंगे। इस बयान के बाद से सियासी गलियारों में भी हलचल मच गई है। चर्चा यह हो रही है कि अब मेवाड़-वागड़ क्षेत्र से दिल्ली की ओर भी एक सियासी यात्रा शुरू हो सकती है। राजकुमार रोत का कहना है कि अगर आदिवासी समुदाय की जनसंख्या को जनगणना में शून्य दिखाया जाता है, तो यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि उनकी अस्मिता और अधिकारों का उल्लंघन है।
अब वह इसे लेकर संसद तक आवाज उठाने की तैयारी में हैं। इस बयान से यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले समय में आदिवासी पार्टी के द्वारा दिल्ली में राजनीतिक विस्तार हो सकता है, खासकर जहां आदिवासी लोग बड़े पैमाने पर रहते हैं। राजकुमार रोत ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में भी यह मुद्दा उठाया, जिसमें उन्होंने दिल्ली में आदिवासियों की स्थिति को लेकर चिंता व्यक्त की।
उन्होंने यह भी लिखा कि जब बात आदिवासियों के हक की होती है, तो उनके नाम तक जनगणना में नहीं होते। अब सवाल यह उठता है कि क्या यह मुद्दा दिल्ली के राजनीतिक को प्रभावित करेगा? क्या आदिवासी समाज अपनी आवाज उठाने में सफल होगा? इन सवालों का जवाब तो वक्त ही देगा। ऐसी ही और बड़ी ख़बरों के लिए जुड़े रहे हिन्दुतान लाइव न्यूज़ के साथ।